Friday, 26 March 2010

मेरे आने के दो महीने पहले

इस वक्त मेरे शरीर के अंगों का निर्माण हो चूका था अब बारी थी अंगों को मजबूत बनाने की तो मम्मी ने क्या किया, मम्मी ने प्रोटीन वाले खाने पर ज्यादा ध्यान दिया।
जैसे उन्होंने दूध और उससे से बनी हुई खाद्य सामग्री पर ज्यादा ध्यान दिया। साथ में फल और प्रसवकर घृत लेती थीं। बाकि सब खाना पीना सामान्य था।
एक राज की बात, खाती तो मम्मी थी पर मुझे बहुत मजा आता था। और उस समय तो और भी जब मम्मी गूपचूप खाती थी। कितना स्वादिष्ट था।

Saturday, 6 February 2010

"मेरा इस दुनिया में आना.."

****मम्मी पापा के लिए खुशियाँ लाना*****

जैसे ही मेरे आने की सूचना मम्मी पापा को मिली तो उन्होंने मेरी अच्छी सेहत और अच्छे विचारों वाली गुड़िया बनाने की तैयारी शुरू कर दी। मम्मी सुबह सुबह शहद और निम्बू पानी लेती थी जिससे उनको डिलीवरी में आसानी होती और एलोपथिक दवाइयों के बुरे असर से भी बचा जा सकता था। मम्मी की डाईट ऐसी थी-

*सुबह-
बादाम, काजू, किशमिश और खजूर लेती थी यह रात को भिगों लेती थी।
अंकुरित गेहूँ के आटे की रोटियाँ खाती थीं।
"फल सर्पी घी" , मुलेठी और सतावर इन तीनों को गुनगुने दूध में मिलाकर पीती थीं।
(इससे शिशु के शारीरिक विकास में मदद मिलती है)

*दोपहर का भोजन-
दोपहर में अपनी भूख के अनुसार भोजन लेती थीं उसमें थोड़े थोड़े ही पूरी सामग्री रहती थी -जैसे उस थाली में रहता था -
दाल, भात, दो सब्जी (सुखी और गीली), सलाद- (अंकुरित मूँग, गाज़र, नवल गोल) पर सलाद में निम्बू का रस भी डालती थी जिससे अंकुरित मूँग आसानी से पाच जाता था।
आचार, पापड़ और दही भी लेती थी।

*शाम को -
दूध और फल लेती थीं।

*रात में -
जो दोपहर में आहार होता था वही रात में भी।

अरे!..........कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे हैं कि मेरे मम्मी कितना खाती थी?

नहीं बाबा नहीं.....मम्मी सारे आहार लेती थी पर कम मात्रा में, अपनी भूख के अनुसार।

और हाँ एक बात और दूध ४ बार , पान तीनों समय लेती थीं जिसमें खाने वाला चुना, कत्था और सुपारी होता था। इससे शरीर को कैल्शियम मिल जाता था।

पर एक राज कि बात बताऊँ आपको!....मम्मी को खूब भूख लगती थी और दिन भर कुछ न कुछ खाती थीं.......हा हा हा....